Wednesday, January 27, 2010

chand ki khwaish

देहरी का दिया घर रोशन करता रहा
मेरे लिए वो खुद रात भर जलता रहा
है ये छोटा सा घर मेरा न कोई महल
इसमें आसमानी टुकडो की नुमाइश क्यों करता
मै चाँद की ख्वाइश भला क्यूँ करता

एक जुगनू बैठ खिड़की पर मुस्कुराती रही
छोड़ अपना घर मेरे लिए जगमगाती रही
चाँद तो रोशन है किसी और के दम पर
मै उधार की रौशनी की गुजारिश क्या करता
मै चाँद की ख्वाइश भला क्यूँ करता

जिंदगी में उजाला भरती रही तेरी नजर
इन आँखों की चमक रहे साथ उम्र भर
जो है भटका पूनम और अमावस के बीच
उसे राहगुजर बनाने की सिफारिश क्यों करता
मै चाँद की ख्वाइश भला क्यूँ करता

2 comments:

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