कर मन कुछ नया सृजन
पुराने सारे खंडहर तोड़ दे
जो न बदले वो वक़्त छोड़ दे
नए सुर , नए ताल , बना कोई नयी धुन
कर मन कुछ नया सृजन
चल खोज सम्भावना परिवर्तन की
सपनो की ईमारत को मिले नीव चिंतन की
कल्पना के घोड़े रचना के गगन पे उड़े
आज इन्द्रधनुष में भी कोई नया रंग भरे
अब न हो कोई सीमा कोई बंधन
कर मनं कुछ नया सृजन
नीले फलक पे भी तेरी अपनी छाप रहे
कृति ऐसी जो तेरे भी बाद रहे
चेतना जब रच दे एक नया जीवन
बन सकता है तू मानव से भगवन
नयी बसंत, नव तरु प्रफुल्लित नव सुमन
कर मनं कुछ नया सृजन
Great Going Shuklaji
ReplyDeleteSid ye Eclectronic City me ghoomne ke baad hi mahsoos hua . Chalo you have created some thing new for sure ATB !
ReplyDeleteGood one..seems to be a potential poem for CBSE
ReplyDeletegood one Saurabh!
ReplyDeletehappend to see this today.. amazing thoughts.. n inspirational.. :)
ReplyDeleteGood One Shukla :)... refreshed memories of your reporter role in SP..
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