जिंदगी ने यु बाँट दी मेरी साँसे
किये न जाने कितने टुकड़े
न जाने कितने हिस्से
तेज धार से काट दी मेरी साँसे
मजहब ने कहा खुदा की नेमत है
तू है जिन्दा ये उसकी रहमत है
कर दो जहां के मालिक का शुकर
रखता है वो तेरी हर सांस की खबर
है जमीन और आसमान की ये साँसे
जिंदगी ने यु बाँट दी मेरी साँसे
मुल्क जिसने बनाई तेरी पहचान
चुकाना है उसका भी अहसान
गवा दे कुछ साँसे वतन परस्ती में
होगा तेरा नाम शहीदों की बस्ती में
सरहदों ने फिर काट दी ये साँसे
जिंदगी ने यु बाँट दी मेरी साँसे
समाज और इन्सानियत भी मांगते हिसाब
तुझे सलामत रखे है हमारा लिहाफ
कौम का है जो कर्ज तुझ पर
उसे हर सांस की कीमत पे अदा कर
अब तो लगती है उधार की साँसे
जिंदगी ने यु बाँट दी मेरी साँसे
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5 comments:
Well written Shuklaji
Thanks Sid , ur encouragement has been consistent :)
very good!
So has been ur work :)
I love reading and hearing poetry, used to have kaya samellan after holi every year. In Kolkata after many years in post-holi days, but unfortunately, no kavya sammelan this year :(
@sandeep thnks , remember our canteen discussion :)
@sid yup they are no longer on the streets now but follow some of the nice ones on TV , (Etv has some) and plus you tube .
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