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Monday, April 12, 2010

srujan

कर मन कुछ नया सृजन


पुराने सारे खंडहर तोड़ दे


जो न बदले वो वक़्त छोड़ दे


नए सुर , नए ताल , बना कोई नयी धुन


कर मन कुछ नया सृजन


चल खोज सम्भावना परिवर्तन की


सपनो की ईमारत को मिले नीव चिंतन की


कल्पना के घोड़े रचना के गगन पे उड़े


आज इन्द्रधनुष में भी कोई नया रंग भरे


अब न हो कोई सीमा कोई बंधन


कर मनं कुछ नया सृजन


नीले फलक पे भी तेरी अपनी छाप रहे


कृति ऐसी जो तेरे भी बाद रहे


चेतना जब रच दे एक नया जीवन


बन सकता है तू मानव से भगवन


नयी बसंत, नव तरु प्रफुल्लित नव सुमन


कर मनं कुछ नया सृजन


6 comments:

Sidharth said...

Great Going Shuklaji

Saurabh said...

Sid ye Eclectronic City me ghoomne ke baad hi mahsoos hua . Chalo you have created some thing new for sure ATB !

Rohan Learns to Blog said...

Good one..seems to be a potential poem for CBSE

Sandeep Khedkar said...

good one Saurabh!

Suniti Satnalika said...

happend to see this today.. amazing thoughts.. n inspirational.. :)

Prathibha said...

Good One Shukla :)... refreshed memories of your reporter role in SP..