Visit blogadda.com to discover Indian blogs sa(u)ransh: A part of Me !: Mahasatta : Glory unto Lord

Saturday, January 3, 2009

Mahasatta : Glory unto Lord

Every time I enter in Siddhivinaya, It overwhelms me how majestic can the image of lord be and above all the faith which human has , It's really this faith that creates Gods. Bible rightly says " Faith is the bird which feels light even when dawn is still dark" . This one is in the praise of the cause and effect of the faith.
To him who creates , nurtures and destroys!

अकथनीय , अवर्णित, परमसत्ता , प्रतिपल करे जग को विस्मित
अद्रिशय होकर भी रहती है, जल थल नभ में निरंतर विचलित
निर्गुण, निरंकार ,निरिविकर , पर करती अनंत स्वरुप विक्सित
है परम्पुन्ज सत् चित् आनंद, ध्यान मात्र कर दे आह्लादित

तुम सरंक्ष्हक , तुम संचालक, हे जगन्नाथ, जगतपति, जगदीश
हे पालनहार तुम ही धरा पर जीव स्वरुप और तुम ही जीवों के ईश
हे जीवनदाता विश्व विधाता, मनुज मात्र का उद्भव तुम्हारा चिर आशीष
अभेद्य, अकल्पनीय, सत्ता के अधिपति , झुके इन चरणों में हमारे शीश

ओ अनादी, अनंत, अद्भुत, तुम हो प्रारंभ तुम्ही हो अंत
पूर्णता , दिव्यता, स्वाभाव तुम्हारा, तुम अजर, अमर अक्षुन्य अखंड
सूर्य को प्रकाशित करने वाले प्रकाशपुंज, ध्यान मात्र हरे तिमिर तुंरत
तुम ही हो शास्वत अविनाशी, सृष्टि के सृजन से लेकर सृष्टि पर्यंत

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