इतने अरसे के बाद मिले है , कितने शिकवे और गिले है
कुछ देर बैठो सुनो , जो पुरानि यादो के सिलसिले है
आज चलो चुरा ले चार पलो को जिंदगी की हथेली से
नाते रिश्तो की जिम्मेदारियों से , काम काज की देहरी से
हर दम फैलते उल्झ्हानो के जाल को भुला दे ज़रा
बेचैनियो से भरे दिन को आज की रात सुला दे ज़रा
फिर मिल कर याद करेंगे कोई गुजारी हुयी कहानी
हंस ले ज़रा याद कर के कोई बचपन की शैतानी
इतने अरसे के बाद मिले है , कितने शिकवे और गिले है
कुछ देर बैठो सुनो , जो पुरानि यादो के सिलसिले है
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