फिर मुस्कुरा दो ना
जयो चाँद घट के बढ़ जाए
रेत पे सफ़ेद चादर बिछाए
बसंत जब छू ले बाग़ को
किसी कोने में कोयल कूक जाए
हंसी की खनक सुना दो ना
फिर मुस्कुरा दो ना
ताजगी बारिश की फुहारों सी
चमक टिमटिमाते तारो सी
गूंजे ये हंसी कुछ ऐसे
रौनक हो यादो के गलियारों की
बुझे से इस मन को बहला दो ना
फिर मुस्कुरा दो ना
ये ऐसा दिया जो और दिए जलाए
पल भर में बिगड़ी बात बनाए
हटा दे ग़मो का मनहूस साया
ख़ुशी की सुनहरी धुप फैलाये
आँखों की नमी को मिटा दो ना
फिर मुस्कुरा दो ना
4 comments:
bahut achhe!!!
lage raho Shuklaji.... try compiling all these in a book...
khanakte lafzon ki jhadi yoon phir laga do na!
Bahut accha blog hai.
thanks Varsha @ poeticbreak
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