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Thursday, July 12, 2012

Bhishm !

जैसे देवेन्द्र असुर संग्राम  में
ऐरावत पे हो शोभित
वैसे ही घुमते गंगापुत्र
कुरुक्षेत्र में कर सबको मोहित


ज्यू नाग करने मणि की रखवाली
त्यु कौरव सेना से रक्षित
अनगिनत रथ , घोड़े हाथी
सवार और पैदल से सज्जित

अग्निकुंड के जैसा प्रज्वल
ज्वाला चाप और बाण चिंगारी
गदा , कतार भाला .
ले हाथ में शक्ति भारी

दावानल हो पूर्ण प्रचंड
आज शत्रु को भस्म कर जाए
जिधर घूमे उधर भय
रक्त और मुंड ही नजर आय

टूटे रथ , कटे बाण
भिददा कवच और गिरी ध्वजा
निष्प्राण हो गिर पड़ा
जो भीष्म के सामने पड़ा

एक क्षण इधर तो पल उधर
उल्का की जैसे गति पायी
टिक न सका रन में कोई
आज सबने मुह की खाई

थम गए वासुदेव देख
अद्भुत ये समर भयंकर
खीची रथ की लगाम
बोले सुनो हे पार्थ धनुर्धर

ये देखो कौरव सेनापति
स्वयं काल का स्वरुप है
अर्जुन उठो और युद्ध करो
भीष्म से जो यम का प्रतिरूप है

अभिमन्यु , युधिस्टर , भीम , नकुल
सहदेव सब करते प्रयास
रथी  भागते हो तितर बितर
नहीं जान बचने की आस

हे पुरुष सिंह हो मोह मूक्त
आज भीषण युद्ध करो
मै नारायण सारथि तुम्हारा
होनी से तुम न डरो


धनञ्जय क्या भूल गए विराट
जहा तुमने भीष्म पे विजय पाई
उसी वीरता को दोहराने की
शुभ घडी लो आज फिर आयी

वध करू  अवध्य पितामह का
ये कैसी आज परीक्षा है
इस से अच्छा है वनवास
नहीं  इस अभागे राज्य की इच्छा है

जो आपकी है आगया केशव
उसका उल्लंघन भी नहीं हो सकता
ले चलिए रथ समर मध्य
कहा कुरु सेनापति लड़ता

गांडीव पर चड़ी प्रत्यंचा
अर्जुन ने भीष्म को ललकारा
एक बाण से काटा धनुष
दूजे से रजत कवच भेद डाला

ले नया धनुष फिर हाथ
भीष्म ने बानो का जाल बुना
साध निशाना अर्जुन को ही नहीं
कृष्ण को भी लक्ष्य चुना

भीष्म के बानो की आंधी
जब छा  चुकी कोना कोना
अर्जुन के हाथ में गांडीव
तब लगने लगा खिलौना

देख अर्जुन के विफल प्रयास
कृष्ण हुए कुछ निराश
क्रोधित हो कूड़े धरा पे
छोड़ हाथ से घोड़ो की रास

पीताम्बर धारी ने आज
एक और अनोखा रूप दिखाया
टूटे रथ के चाक को
सुदर्शन चक्र सा सजाया

बरसते आखों से अंगारे
मानो  प्रलय की शुरुआत
ललकार भीष्म को बोले कृष्ण
कर दूंगा युद्ध का अंत आज

छोड़ रथ , अस्त्र और शस्त्र
खुद भीष्म  आ खड़े सामने
देख सुदर्शन धारी को
लगे वीरगति का वर मांन्गाने

हे गोविन्द मृत्यु तुम्हारे हाथ
मोक्ष का अखंड प्रसाद है
तुम्हारे चरणों को पाकर
फिर न जीवन मरन का अवसाद है


प्रभू मुझे अब मुक्त करो
लो मै  स्वयं उपस्थित
त्वदीयं वस्तु गोविन्दम
तुभ्य मेव समर्पित

अर्जुन भी छोड़ रथ को
चरणों में जा गिरा
टूट गया है मेरा मोह
देव मुझे करे क्षमा

शस्त्र न उठाने की
गीताकार आपकी प्रतिज्ञा है
भीष्म को करूँगा प्राण मुक्त
शिरोधार्य आपकी आग्या है

फिर रथ पे चला सारथि
ले होठों पे तिरछी मुस्कान
देख आज ये भीस्म प्रतिज्ञा
कुछ विचलित सा था भगवान्