तुम जो धीरे धीरे मुस्कराते हो
कुछ अनबूझे शब्द सुनाते हो
समझ गयो हो बात इशारों की
या फिर मुझको कुछ समझाते हो
किलकारियों से कभी माँ को बुलाया
कभी मचल कर ध्यान बंटाया
फिर की शरारत कोई सपने में
तभी तो सोये सोये भी झिझक जाते हो
दुबक गए गोद में भूल कर दुनिया
नजर बचा कर अंगूठा चूस लिया
नींद से भरी ये अधखुली आँखे
इन अदाओं से किसको बहलाते हो
चलो तुम्हे थोडा झूला झुला दू
आओ बाहर चंदा मामा से मिला दू
माथे पे लगा लो काजल का टीका
खुद ही अपनी मसुम्यीत को नजर लगाते हो
कुछ अनबूझे शब्द सुनाते हो
समझ गयो हो बात इशारों की
या फिर मुझको कुछ समझाते हो
किलकारियों से कभी माँ को बुलाया
कभी मचल कर ध्यान बंटाया
फिर की शरारत कोई सपने में
तभी तो सोये सोये भी झिझक जाते हो
दुबक गए गोद में भूल कर दुनिया
नजर बचा कर अंगूठा चूस लिया
नींद से भरी ये अधखुली आँखे
इन अदाओं से किसको बहलाते हो
चलो तुम्हे थोडा झूला झुला दू
आओ बाहर चंदा मामा से मिला दू
माथे पे लगा लो काजल का टीका
खुद ही अपनी मसुम्यीत को नजर लगाते हो
1 comment:
Good One again :)
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