Visit blogadda.com to discover Indian blogs sa(u)ransh: A part of Me !: Atharv

Thursday, December 13, 2012

Atharv

तुम जो धीरे धीरे मुस्कराते हो
कुछ अनबूझे शब्द सुनाते हो
समझ गयो हो बात इशारों की
या फिर मुझको कुछ समझाते हो

किलकारियों से कभी माँ को बुलाया
कभी मचल कर ध्यान बंटाया
फिर की शरारत कोई सपने में
तभी तो सोये सोये भी झिझक जाते हो

दुबक गए गोद में भूल कर दुनिया
नजर बचा कर अंगूठा चूस लिया
नींद  से भरी ये   अधखुली आँखे
इन अदाओं से किसको बहलाते हो

चलो   तुम्हे थोडा झूला झुला दू
आओ बाहर  चंदा मामा से मिला दू
माथे पे लगा  लो काजल का टीका
खुद ही अपनी मसुम्यीत को नजर लगाते हो






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