बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है
रात का बसेरा सुबह उजड़ जाना होता है
बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है
बिना मंजिल की राहो में चलते जाते है
हर मोड़ पे कितना कुछ छोड जाना होता है
बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है
आसमान की छत के नीचे है जमीं का बिछोना
न कुछ पाने की चाहत , न है कुछ खोना
इंसान के हाथ में नही पाना खोना होता है
बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है
हवा के एक झोके जैसे चलते जाना
कभी कहानी परदेस की, कभी देश के गीत गाना
इन गीतों और कहानियो से इतिहास बनाना होता है
बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है
चल सको तो चलो तुम भी उसी चाल से
हो बादल गगन का या एक पत्ता टूटा डाल से
जिंदगी कब रूकती है , उसे चलते जाना होता है
बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है
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2 comments:
Maza aa gaya!!!
thanks Sandeep !! Jarranawaji :)
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