Visit blogadda.com to discover Indian blogs sa(u)ransh: A part of Me !: Banjaro Ka Kaha Thikana

Monday, November 16, 2009

Banjaro Ka Kaha Thikana

बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है
रात का बसेरा सुबह उजड़ जाना होता है
बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है

बिना मंजिल की राहो में चलते जाते है
हर मोड़ पे कितना कुछ छोड जाना होता है
बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है

आसमान की छत के नीचे है जमीं का बिछोना
न कुछ पाने की चाहत , न है कुछ खोना
इंसान के हाथ में नही पाना खोना होता है
बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है

हवा के एक झोके जैसे चलते जाना
कभी कहानी परदेस की, कभी देश के गीत गाना
इन गीतों और कहानियो से इतिहास बनाना होता है
बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है

चल सको तो चलो तुम भी उसी चाल से
हो बादल गगन का या एक पत्ता टूटा डाल से
जिंदगी कब रूकती है , उसे चलते जाना होता है
बंजारों का कहा कोई ठिकाना होता है

2 comments:

Sandeep Khedkar said...

Maza aa gaya!!!

Saurabh said...

thanks Sandeep !! Jarranawaji :)